Why and how Aarti - आरती क्यों और कैसे
पूजा के अंत में हम सभी भगवान की Why and how Aarti करते हैं। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें शामिल होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता को Why and how Aarti करते समय उन्हें ३ बार पुष्प अर्पित करें। इस दरम्यान ढोल, नगाड़े, घड़ियाल आदि भी बजने चाहिए।
एक शुभ पात्र में शुद्ध घी लें और उसमें विषम संख्या (जैसे ३,५ या ७) में बत्तियाँ जलाकर आरती करें। आप चाहें, तो कपूर से भी आरती कर सकते हैं । सामान्य तौर पर पाँच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप कहते हैं। आरती पाँच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरी धुले वस्त्र से, चौथी आम, और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात् शरीर के पांचों भाग (मष्तिष्क, दोनों हाथ-पाँव) से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती हमारे शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव ऐसा होना है चाहिए, मानों वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के स आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि हम अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं तो यह पंचारती कहलाती है
सामग्री का महत्व
आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियाँ भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।
कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अन्दर का स्थान बिल्कुल खाली ■ होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं। यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग ■ करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंती है कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।
जल- जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।
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नारियल-आरती के समय हम कलश पर नारियल रखते हैं। नारियल की शिखाओं में सकारात्मक ऊर्जा का भंडार पाया जाता है। हम जब आरती गाते हैं, तो नारियल की शिखाओं में मौजूद ऊर्जा तरंगों के माध्यम से कलश के जल में पहुंचती है। ये तरंगें काफी सूक्ष्म होती हैं।
सोना- ऐसी मान्यता है कि सोना अपने
आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा
फैलाता है। सोने को शुद्ध कहा जाता है। यही वजह है कि इसे भक्तों को भगवान से जोड़ने का माध्यम माना जाता है।
ताँबे का पैसा-ताँबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। कलश में पैसा डालना त्याग का प्रतीक भी माना जाता है। यदि आप कलश में ताँबे के पैसे डालते हैं, तो इसका मतलब है कि आपमें सात्विक गुणों का समावेश हो रहा है।
सप्तनदियों का जल-गंगा, गोदावरी, यमुना, - सिंधु, सरस्वती, कावेरी और नर्मदा नदी का जल - पूजा के कलश में डाला जाता है। सप्त नदियों के जल में सकारात्मक ऊर्जा को उत्कृष्ट करने और उसे वातावरण में प्रवाहित करने की क्षमता होती है। क्योंकि ज्यादातर योगी-मुनि ईश्वर से एकाकार होने के लिए इन्हीं नदियों के किनारे तपस्या कर चुके हैं।
सुपारी और पान-यदि हम जल में सुपारी ■ डालते हैं, तो इससे उत्पन्न तरंगें हमारे रजोगुण को समाप्त कर देती हैं और हमारे भीतर देवता के अच्छे गुणों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। पान f की बेल को नागबेल भी कहते हैं।
नागबेल को भूलोक और ब्रह्मलोक को जोड़ने ने वाली कड़ी माना जाता है। इसमें भूमि तरंगों को आकृष्ट करने की क्षमता होती है। साथ ही, इसे सात्विक भी कहा गया है। देवता की मूर्ति से उत्पन्न ती सकारात्मक ऊर्जा पान के डंठल द्वारा ग्रहण की में जाती है।
तुलसी-आयुर्वेद में तुलसी का प्रयोग सदियों का से होता आ रहा है। अन्य वनस्पतियों की तुलना में हो तुलसी में वातावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती है।
जब बड़े-बड़े शहतीर पानी के ऊपर एक साथ तैरते हैं, तो ऊपर चढ़कर कितने ही मनुष्य नदी को पार कर सकते हैं; उनके बोझ से वे डूबते नहीं। पर एक छोटी सी लकड़ी के टुकड़े पर यदि कौआ भी बैठ जाए, तो वह डूब जाती है। इसी प्रकार, जब भगवान के अवतारों का आविर्भाव होता है, तो कितने ही हजारों-लाखों मनुष्य उनके आश्रय से तर जाते हैं। परन्तु साधारण सिद्ध पुरुष किसी तरह केवल आप ही पार हो सकता है।अवतार-
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