Shri Krishna is a philosopher - तत्वज्ञानी हैं श्रीकृष्ण
कृष्ण का नाम आते ही एक भावविभोर अवस्था वन जाती है। सभी के हृदय सम्राट भगवान के संबंध में क्या बोला जा सकता है? यह प्रथम प्रश्न है। दूसरा प्रश्न है, है क्या उन पर बोल सकते हैं ? क्या बोलना उ उचित है? यह तीसरा प्रश्न है और क्या बोलने का अधिकार है? यह चौथा प्रश्न है। इन प्रश्नों से बुद्धि कुंठित बन जाती है। मुझे तो लगता है कि उनको नमस्कार करके ही आगे बढ़ना चाहिए। Shri Krishna is a philosopher है?
कृष्ण पूर्णावतार हैं। उनके जीवन में एक भी कमजोरी नहीं है कि जिस पर हम चोंच मार सकें। कृष्ण के जैसा समाजोद्धारक हुआ ही नहीं है और होगा भी नहीं । कृष्ण के जैसा नीतिज्ञ कोई हुआ ही नहीं । कृष्ण के जैसा राजनीतिज्ञ भी नहीं हुआ है। आध्यात्म के लिए कृष्ण भगवान का जीवन ही देखना चाहिए। 'कृष्ण' नाम और 'कृष्ण भगवान' यह एक लाजवाब चरित्र है। रलों में कृष्ण कौस्तुभ मणि है। कृष्णावतार भारत का भूषण है और महाभारत का वैभव है। महाभारत में से दो व्यक्तियों-कृष्ण और भीष्म को निकाल देंगे तो क्या रहेगा? कुछ नहीं ! तो फिर महाभारत को डुबो देना चाहिए, उसकी आवश्यकता ही नहीं है।
कृष्ण-चरित्र के चार पहलू हैं प्रथम पहलू मे -
उन्होंने भत्तों पर प्रेम की वर्षा की है। कृष्ण भगवान प्रेम के प्रतीक हैं। जन्म से ही लेकर देहोत्सर्ग तक उन्होंने सभी को प्रेम ही दिया है, दूसरा कुछ नहीं। कृष्ण प्रभावी रानीतिज्ञ थे, यह उनका दूसरा पहलू में है। तीसरा पहलू यह है कि दैवी काम करने वालों के वे सखा थे। जहाँ-जहाँ दैवी कार्य चलता होगा
जगद्गुरु हैं। लोगों को कृष्णभगवान तत्वज्ञानी नहीं लगते, क्योंकि उन्होंने गृहस्थी की है, लड़ाइयां लड़ी हैं, भिन्न- भिन्न दुख उठाये हैं। यह देख- सुनकर लोगों को लगता है कि वे भगवान कैसे हो सकते हैं? तत्त्वज्ञानी का अर्थ क्या है? वह उच्च आसन पर बैठा हुआ होना चाहिए। शांतम्-शांतम् बोलते रहने वाला होना चाहिए, तभी वह तत्त्वज्ञानी कहलाता है। जो हंसता है, खेलता है, वह तत्त्वज्ञानी कैसे हो सकता है? यह जो कल्पना तत्त्वज्ञानी की है, उसका कृष्ण भगवान ने वस्त्रहरण किया है।
मैं खड़ा रहूँगा, ऐसी उनकी प्रतिज्ञा है। वे मानव वंशके उद्धारक है, यह उनका चौथा पहलू है। गोता कहकर उन्होने मानव वंश का उद्धार किया है। आपको तत्त्वज्ञानी बनना।
मनुष्य पुरुषार्थी होना चाहिए। माता-पिता को आनंद देने वाला होना चाहिए। यदि लड़का मां को छोड़ता ही नहीं उसी के पास बैठा रहता है, तो कैसे चलेगा? उसको पुरुषार्थी बनना चाहिए, तभी माता- पिताको गौरव लगता है। पुरुषार्थी के साथ-साथ मनुष्य को विनयशील बनना चाहिए । नहीं तो लड़का पुरुषार्थी बनता है और पिता को जेलखाने में डाल देता है। आनादि काल से ऐसा चलता आया है। कोई कहेगा, हमने पिता को जेलखाने में नहीं डाला है। हमारे सबके पिता जेलखाने में हीं हैं। खाओ, पिओ और रहो। सबको खाना मिलेगा। सोने को मिलेगा। बैठे रहो, और तुम्हें क्या चाहिए। ऐसा चित्ता को कहा गया तो वह जेलखाने
यदि यही परिणाम होगा, तो परिवार ही समाप्त हो जाएगा। इसको तत्त्वज्ञान नहीं कहते यही कृष्ण भगवान को कहना है। कृष्ण भगवान ने परिवार को स्वीकारा ह?
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/>शुकदेव ने कहा कि कृष्ण लीला सुनने पर उनके प्रति विश्वास का निर्माण होगा और जीवन को एक मोड़ मिलेगा। तभी अंतिम समय कृष्ण भगवान का स्मरण होगा । यं कृष्ण लीला का अर्थ हम समझते है। कि कृष्ण ने ना शकटासुर और पूतना मौसी को किस तरह मारा, ना उसका वर्णन कथा के रूप में सुनना। वास्तव में ना कृष्ण लीला का अर्थ है, 'कृष्ण का जीवन !' 'लीला' ह शब्द का अर्थ है जीवन। जिस प्रकार भगवान ने न लीला की, उसी प्रकार वल्लभाचार्य ने भी लीला की। कृष्ण का जीवन सुना होगा तो हमारे जीवन में सुख आएगा, तव कृष्ण याद आएंगे, दुख आएगा तो भी कृष्ण याद आएंगे। जीवन में संघर्ष के प्रसंग आए तो भी कृष्ण याद आएंगे?
निष्कर्ष;-
कृष्ण भगवान का जीवन वास्तविक है। च जीवन में वास्तविकता का सामना करना पड़ता है। कृष्ण भगवान ने मनुष्य के सामने आने वाली परिस्थितियों का सामना किया है। अतः जिसने । उनका जीवन पढ़ा होगा, जब सुख, दुख और संघर्ष आए तब उस परिस्थिति में श्रीकृष्ण ने कैसा आचरण किया, उसे याद आएगा। वह यदि याद आया तो मनुष्य दुखमुक्त, और भयमुक्त बनता है। मनुष्य आत्मविश्वासपूर्ण हो जाता है।
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