Shri Krishna Kripa- श्रीकृष्ण-कृपा

 

            

Shri Krishna Kripa- श्रीकृष्ण-कृपा




संसार •के व्यवहार में खर्च हो रही शक्ति को म विवेक मे रोको। समय और शक्ति के नाश का अर्थ है मर्वम्व का नाश। Shri Krishna Kripa मे परमात्मा सब है प्रकार से उदार है। किन्तु समय देने में उदार नहीं है।

Shri Krishna Kripa
श्रीकृष्ण का मित्र-प्रेम अलौकिक है। उनको इच्छा हानी है कि जीव मेरा मित्र है, उसका तो मेरे साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध होना चाहिये।


ब्रजवासी कंस को कर रूप में मक्खन नही मिलता था। कन्हैया ने बालगोपाल- चार-विद्या मण्डल की स्थापना की। चोर कफन ऋषि के शिष्य हैं और कफल चोरों के आचार्य हैं। इसलिये लाला ने मित्रों को कफलम् मंत्र दिया।


चोरी पाप है। पर पाप कौन करता है? शरीर सुख के लिये क्रीड़ा पाप है।


जो प्रभु के साथ क्रीड़ा करता है उसे पाप करने की इच्छा नहीं होता। शास्त्र का प्रवृत्ति-धर्म अज्ञानी जीवों के लिये है, क्योकि ऐसे जीव ईश्वर से विमुख है।





प्रभु-प्रेम में जिन्हें देहभान भी नहीं रहता, शास्त्र उनके लिये नहीं है।




बालक प्रभु के साथ क्रीड़ा करते हैं। उनके हाथों पाप नही होता। यह चोरी की कथा नहीं, प्रेम की श्रीकृष्ण-कृपा कि कथा है।




गोपियों का प्रेम देखकर प्रभु सबके घर जा,




मक्खन खाते हैं, क्या वह चोरी कहो जायेगी

श्रीकृष्ण लीला लौकिक होते हुए भी अलौकिक ब है। मुक्ति दो प्रकार की है-१) क्रम- मुक्ति २) सद्यः मुक्ति। कितने ही क्रम से सीढ़ियाँ चढ़ते जाते हैं। प्रथम शूद्र के घर जन्म होता है, पीछे वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण के घर। ब्राह्मण में भी अग्निहोत्री होने के बाद योगी होता है। योगी होने पर भी संचित कर्मों को भस्मीभूत करने के लिये तीन जन्म लेने पड़ते हैं। यह क्रम- मुक्ति है।

श्रीकृष्ण जिस जीव पर विशिष्ट कृपा करते हैं, उसे - सद्योमुक्ति प्रदान करते हैं। भगवान की विशिष्ट कृपा के लिये कोई विधान नहीं है। प्रभु सेवा करे, ध्यान करे; फिर भी कहे कि मेरे से कुछ नहीं बनता, उसे ही कृपा की प्राप्ति होती है।





घर का काम भी गोपियाँ श्रीकृष्ण-कृपा = समझकर ही करती हैं। उनका स्मरण करते-करते काम करती हैं।

सोते समय जप करते हुए यदि तुम्हें निद्रा आ जावे और जगाने पर भी जप करने लग जावो, तो शयन और जागने के संधिकाल में जप चालू था-प्रभु ऐसा मानते हैं।





कथा सुनने के बाद किये हुये पापों के लिये पश्चाताप करना चाहिये।

बड़े-बड़े योगी संसार का त्याग करने के लिये तप करते हैं। गोपियाँ श्रीकृष्ण को भूलना चाहती हैं, पर घर के कामों में भी नहीं भूल पातीं।


प्रेम में किसी सुख-भोग की इच्छा नहीं होती, प्रियतम को सुखी देखने की इच्छा होती है।




प्रेम में सुख की इच्छा रहे- यह वासना है।





स्त्री अन्नपूर्णा का स्वरूप है। सबको भोजन करवाके आप खाती हैं।




ईश्वर संकट के समय दौड़ता आता है, जीव संकट के समय दगा देता है।




श्रीमहाप्रभुजी ने गोपियों को "प्रेम संन्यासिनी" की पदवी दी हैं, जो अति उपयुक्त है।




गोविन्द को गोपी में रहना है। बुद्धि 'गोपी' है। जीव जब परमात्मा के लिये पागल होता है, तभी उसे गोविन्द मिलते हैं।




मनुष्य सहन कर सके ऐसे दिव्य रूप में ही ईश्वर जौव से मिलने आता है। ईश्वर का कोई एक स्वरूप नहीं है। जिस घर में परमात्मा के लिये कोई वस्तु नहीं है, वह घर श्मशान के समान है।




अहंकारपूर्ण बुद्धि प्रभावती है। स्थूल बुद्धि परमात्मा को नहीं पकड़ सकतीहै। साधनाके बाद ही परमात्मा का प्रकाश मिलता है।




साधना करते-करते साध्य के हाथ में आने पर भी साधन को नहीं छोड़ना चाहिए।




सिद्धि से प्रसिद्धि मिलती है। प्रसिद्धि में माया का वास है। इससे पतन भी होता है। हाथ में आये हुए भगवान के छिटक जाने में देर नहीं लगती। इसलिए अन्तिम श्वास तक भी जीव को भगवान नहीं मिले हैं, ऐसा मानो भगवान के मिलने पर भी सेवा-स्मरण में तन्मय रहो।




लाला रामावतार में बन्दरों को मक्खन खिलाता है। रामावतार में बन्दर वृक्षों की कोपल खाकर रहते थे। वे रामफल और सीताफल के अतिरिक्त दूसरा खाता कुछ नहीं हैं। बानर भी मर्यादा रखते हैं। पर मनुष्य ही ऐसा है कि कुछ प्राप्ति हो जाने पर मर्यादा तोड़ देता है।




प्रभावती के एक लड़का था। उसे पता चला कि माँ ने लाला को पकड़ा है। उसने माँ से कहा कि मैंने लाला को आमंत्रित करके बुलाया है, अतएव जो सजा देनी हो मुझको दो। कन्हैया के घर यशोदा माँ

मक्खन करेंगी।




जन




जब तक माता यशोदा लाला को धमकावे तब तक तो ठीक है, पर यदि मारेंगी तो मैं। बीच में पड़ कर कहूँगा कि मारो




लाला के हाथ में आ जाने के बाद प्रभावती " श्रीकृष्ण को भूलती हैं। अकड़कर कहती हैं कि मैंने लाला को पकड़ा है।




रास्ते में वृद्ध ब्रजवासी आ रहे थे। अतएव करके चल रही थी। प्रभारी से इशारा किया और दूसरा हाथ पकड़ने को ही कहा तथा अपने मित्र का हाथ पकड़वा दिया। आप का तो छूट कर यशोदाजी के पास पहुँच गये। प्रभावती ने ■ जाकर यशोदा माँ से कहा कि लो तुम्हारे लाला को पकड़ लाई हूँ।


जो श्रीकृष्ण को बाहर खोजता है, उसको - फजीहत होती है। आनन्द किसी रूप में नहीं है। आनन्द बंगले में नहीं हैं। जो आनन्द को बाहर खोजता है, वह दुखी रहता है। आनन्द को अन्दर हो खोजो ।

यशोदाजी ने कहा कि कन्हैया तो अन्दर बैठा है। घूंघट हटाकर जब प्रभावती ने देखा तो अपने बालक को पाया। उसने उसकी ताड़ना की। जो धर्म के लिये मार खाता है-परमात्मा के लिये

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धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र का परिचय

 



मार खाता है, उसे रोना नहीं पड़ता। "नरसैया को स्वामी साचो...... झूठी व्रज की नारी।"

है, प्रभु कहते हैं-जो मेरे साथ मेरे आँगन में आता वह रोता हुआ नहीं जाता। या मक्खन में मिठास है- तो-गोपियों के या उनके प्रेम में मिठास है-

FAQ

चोरी पाप है। पर पाप कौन करता है?

मार खाता है, उसे रोना नहीं पड़ता।

या मक्खन में मिठास है- तो

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