Sanhar Me Kalyan-संहार में कल्याण

Sanhar Me Kalyan-संहार में कल्याण ;

यद्यपि भगवान् शिवमें शिवत्व परिव्याप्त है तथापि उनमें Sanhar Me Kalyan संहारकशक्ति ही विशेष रूपसे अधिष्ठित है और उसी शक्तिके कारण वे संसारमें सबसे अधिक प्रसिद्ध देवता है।


Sanhar Me Kalyan
संहार में कल्याण

तनपर वस्त्र नहीं, लँगोटीके लिये कपड़ा नहीं। जब कोई मिलने जाता है तो नीचे साँपको लपेटने लगते हैं। शरीरपर विभूति, गलेमें अस्थिपञ्जर अथवा कंकाल, निवासके लिये श्मशान, ऐसा तो है रुद्र-रूप किंतु नाम देखो तो 'शिव'। यह विरोधाभास भी बड़ा रहस्यपूर्ण है। इनका दूसरा प्रसिद्ध नाम 'रुद्र' है। 'रुद्र' इसलिये कि ये दुष्टों को रुलानेवाले हैं। वैसे वैदिक शब्दों में 'त्र्यम्ब' कहलाते हैं। भूत, वर्तमान, भविष्य-इन तीनों कालोंकी बातको आप जाननेवाले हैं।
'त्र्यम्बकं यजामहे' यह वेदमन्त्र प्रसिद्ध ही है। शिवजीका, रुद्रजीका, यह भयंकर रूप भी सही है, किन्तु इनका शिव-स्वरूप नहीं है, यह बात नहीं। यदि रुद्ररूपके अतिरिक्त इनका शिवरूप न होता तो वेदमन्त्र-

'याते रुद्र शिवा तनूः'
'हे रुद्र! तेरे जो शिव-कल्याणकारी शरीर हैं, रूप हैं उनसे हमारा शिव कर-कल्याण कर ऐसी प्रार्थना क्यों करते?'

प.पू. बालव्यास पं. श्रीकांतजी शर्मा


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विपरीत भयंकर है।

संसार में ईश्वरका सर्वश्रेष्ठ नाम है - 'ओम्। उसमें हैं तीन अक्षर-'अ, उ, म्,। वे हैं शक्तिके द्योतका अ=उत्पत्ति-शक्तिका द्योतक (प्रजापति- ब्रह्मा), उ = धारक अर्थात् स्थिति-शक्तिका द्योतक (विष्णु), म् = प्रलय अर्थात् संहारक शक्ति का द्योतक (रुद्र) । तीनों शक्तियोंका पुञ्ज ही परमेश्वर है। वैदिक रुद्रीमें रुद्रकी समस्त संहारक शक्तियोंका विस्तृत वर्णन है। उसकी संहारक शक्तिमें हो संसारका कल्याण है। यदि रुद्रमें संहारक शक्ति न हो तो असंख्य जीवात्माओंके अदृष्ट अर्थाद धर्माधर्मके अनुरूप समय पर और तत्वोंके क्रमपूर्वक सृष्टि का संहार कौन करे? सृष्टिका संहार न हो तो फिर अदृष्ट चक्रके अनुसार प्रजापति भी बैठे-बैठे क्या करें, विष्णु भी क्या करें? संहारक

पाचनमाली : अगस्त २००६/

वस्तुतः बात यह है कि जब 'शिव' अपने स्वरूपमें लीन होते हैं तब वह सौम्य रहते हैं, जब संसारके अनर्थों पर दृष्टि डालते हैं तब भयंकर हो जाते हैं और उस दशामें कवि शंकरके शब्दों में कहना पड़ता है कि-

शंकर ! यदि तू शंकर है, फिर


अपेक्षा अधिक पूजा होती है। पौराणिक गाथा भी चाहे किसी रूपमें प्रचलित हो, इसी तत्त्वका चोध

कराठी है। शिवजीके संहारमें ही संसार का कल्याण है। * विविच्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः। इदमेकं सुनिष्पन्नं योगशास्त्रं परं मतम् ॥

'मैंने समस्त शास्त्रोकी विवेचनाकी, उन शाखी बार बार विचारा और मैं इसी निश्वय पर पहुंचा हूँ कि योगशास्त्रसे बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है।' वैसे शिवजो नृत्यविद्या के आद्य प्रवर्तक थे

और उनके डमरूसे हो-(१) अ-इ-उ-ण, (२) ऋ-ल-क, (३) ए-ओ-ङ, (४) ऐ-औ-च, (५) ह-य-व-र-टू, (६) ल-ण, (७) व्-म- -ण-न-म, (८) झ-भ-ज, (९) घट-घ-चू. (१०) ज-ब-ग-ड-द-श. (११) ख-फ-छ- उ-च-च-ट-त-चू, (१२) क-प-य्. (१३) श- १. सर् (१४) ह-ल्-ये व्याकरण-शास्त्र के मूल सूत्र निकले। योग-विद्याके प्रवर्तक नृत्यविद्याके उत्पादक, व्याकरण शाखके संचालक शिवजी का बाह्यरूप भले ही भयंकर हो, किंतु उनकी सब कृतियाँ शिवकारक ही है। इसीलिये परिणामवादको

लेकर रुद्रजी शिव ही है-चाहे पौराणिक शिव हो, चाहे वैदिक शिव हो, चाहे परमपदको प्राप्त योगाचार्य शिव, नर्तकाचार्य शिव अथवा व्याकरण शाखके प्रवर्तक शिव हो।

उस परमपिता प्रभुसे हम प्रतिदिन संध्यामें प्रार्थना करते है-

नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ।

क्यो ? इसीलिये कि सांसारिक दृष्टिसे रुद्र हैं एकादश-प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कृर्म, कूकल, देवदत्त, धनञ्जय-ये दस और मुख्य प्राण ग्यारहवाँ जिसके कि ये उपयुक्त दस भेद है। शरीर यन्त्रको यही चलाते रहते हैं। ये ठीक-ठीक चलें तो मनुष्यका सब शिव-कल्याण समझिये, नहीं ती यही रुद्र रुलानेवाले बन जाते हैं। इसमेसे एककी गति भी बिगड़ी तो शरीर निकम्मा बना समझिये। जो इन एकादश प्राणों को मिताहार-विहार द्वारा, योगाभ्यास द्वारा वशमें रखता है, वही सुख पाता है। इसलिये एकादश रुद्रोंको उपासना द्वारा प्रसन करो।

FAQ


भजन में जल्दी करो

भजन-आतुरी कीजिये और बात में देर ।।

और बात में देर जगत् में जीवन धोरा ।

मानुष-तन धन जात गोड़ घरि करौ निहोरा ।।

काँच महल के बीच पवन इक पंछी रहता । दर दरवाजा खुला उड़न को नित उठ चहता ।।

भजि लीजै भगवान् एही में भल है अपना ।

आबागौन छुटि जाय जनम की मिटै कलपना ।।

फलटू अटक न कीजिये चौरासी घर फेर ।

भजन-आतुरी कीजिये और बात में देर ।।

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